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<p><span data-sheets-value="{"1":2,"2":"मोहनदास करमचन्द गाँधी 19वीं शताब्दी के सबसे सम्माननीय आध्यात्मिक एवं राजनैतिक नेताओं में से एक थे। भारत की जनता को ब्रिटिश शासन से मुक्ति दिलाने के लिए गाँधीजी ने अहिंसापूर्ण संघर्ष का रास्ता अपनाया। उन्हें भारत की जनता द्वारा राष्ट्रपिता कहकर सम्मान दिया जाता है। इस छोटी-सी पुस्तक में हमने पाठकों के समक्ष गाँधीजी के चिन्तन की प्रमुख प्रवृत्तियों तथा उनके अन्तिम निष्कर्षों को प्रस्तुत करने का भरसक प्रयत्न किया है। जहाँ तक संभव हुआ है हमने गाँधीजी के विचारों को उनके शब्दों में प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। यह पुस्तक गाँधीजी के विषय में कोई नीरस विश्लेषण नहीं है। यह उन वर्षों की संपूर्ण जीवनी नहीं है, यह वह सार है जिसका अन्वेषण किया गया है तथा जो महज तथ्य और व्याख्या नहीं है। प्रस्तुति सामान्यतः क्रमागत नहीं है क्योंकि उनके चिन्तन एवं अनुभवों को विभिन्न अध्यायों एवं विषयों में विभक्त किया गया है। अपने एवं अपने समाज के अन्दर मूलभूत बदलाव लाकर ही हम शान्तिपूर्ण एवं न्यायपूर्ण समाज का निर्माण करने में समर्थ होंगे। हमें गाँधीजी के सन्देश को समझकर, उसका अर्थ जानकर, उसका अनुसरण करना चाहिए।"}" data-sheets-userformat="{"2":12477,"3":{"1":0,"3":1},"5":{"1":[{"1":2,"2":0,"5":{"1":2,"2":0}},{"1":0,"2":0,"3":3},{"1":1,"2":0,"4":1}]},"6":{"1":[{"1":2,"2":0,"5":{"1":2,"2":0}},{"1":0,"2":0,"3":3},{"1":1,"2":0,"4":1}]},"7":{"1":[{"1":2,"2":0,"5":{"1":2,"2":0}},{"1":0,"2":0,"3":3},{"1":1,"2":0,"4":1}]},"8":{"1":[{"1":2,"2":0,"5":{"1":2,"2":0}},{"1":0,"2":0,"3":3},{"1":1,"2":0,"4":1}]},"10":1,"15":"Calibri","16":11}" style="font-size: 11pt; font-family: Calibri, Arial;">मोहनदास करमचन्द गाँधी 19वीं शताब्दी के सबसे सम्माननीय आध्यात्मिक एवं राजनैतिक नेताओं में से एक थे। भारत की जनता को ब्रिटिश शासन से मुक्ति दिलाने के लिए गाँधीजी ने अहिंसापूर्ण संघर्ष का रास्ता अपनाया। उन्हें भारत की जनता द्वारा राष्ट्रपिता कहकर सम्मान दिया जाता है। इस छोटी-सी पुस्तक में हमने पाठकों के समक्ष गाँधीजी के चिन्तन की प्रमुख प्रवृत्तियों तथा उनके अन्तिम निष्कर्षों को प्रस्तुत करने का भरसक प्रयत्न किया है। जहाँ तक संभव हुआ है हमने गाँधीजी के विचारों को उनके शब्दों में प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। यह पुस्तक गाँधीजी के विषय में कोई नीरस विश्लेषण नहीं है। यह उन वर्षों की संपूर्ण जीवनी नहीं है, यह वह सार है जिसका अन्वेषण किया गया है तथा जो महज तथ्य और व्याख्या नहीं है। प्रस्तुति सामान्यतः क्रमागत नहीं है क्योंकि उनके चिन्तन एवं अनुभवों को विभिन्न अध्यायों एवं विषयों में विभक्त किया गया है। अपने एवं अपने समाज के अन्दर मूलभूत बदलाव लाकर ही हम शान्तिपूर्ण एवं न्यायपूर्ण समाज का निर्माण करने में समर्थ होंगे। हमें गाँधीजी के सन्देश को समझकर, उसका अर्थ जानकर, उसका अनुसरण करना चाहिए।</span><br></p>