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<p><span data-sheets-value="{"1":2,"2":"पंडित मदन मोहन मालवीय एक बहुमुखी व्यक्तित्व वाले व्यक्ति थे। वे एक महान देशभक्त, एक शिक्षाविद्, एक समाज सुधारक, एक उत्साहपूर्ण पत्रकार, एक अनिच्छुक किंतु प्रभावशाली अधिवक्ता, एक सफल सांसद एवं एक उत्कृष्ट राजनेता थे। वे अंतर्मन से धार्मिक एवं मूल रूप से हिंदू थे और साथ-ही वे आधुनिक शिक्षा द्वारा विज्ञान के प्रसार एवं हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रवर्तक थे। वे अपने समय के एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे किंतु उन्होंने इसके लिये संवैधानिक तरीकों और साधनों द्वारा संघर्ष किया न कि ब्रिटिश सरकार से सीधे टकराव द्वारा। वे कांग्रेस में सम्मिलित हुए और इसमें उच्चतम स्तर तक पहुँचे किंतु फिर भी कई बार उन्होंने इसकी नीतियों का विरोध किया, क्योंकि उन्हें लगा कि वे नीतियाँ राष्ट्रहित के विरुद्ध थीं। उन्होंने कभी भी कांग्रेस की हर बात पर आँखें बंद करके विश्वास नहीं किया। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय भारत के लिये उनका महानतम योगदान है। यह वास्तव में उनकी बड़ी उपलब्धि थी जो कि भारत की जनता की शिक्षा के हित में थी और जिसे उन्होंने स्वयं अपने जीवनकाल में प्रफलित होते हुए देखा। अंदर के पृष्ठों में इस बात का एक रोचक एवं प्रेरक वर्णन है कि कैसे एक साधारण कथावाचक का पुत्र ऊँचा उठकर ‘महामना’ कहलाया जो कि गांधी की ‘महात्मा’ के समान उपाधि है।"}" data-sheets-userformat="{"2":12477,"3":{"1":0,"3":1},"5":{"1":[{"1":2,"2":0,"5":{"1":2,"2":0}},{"1":0,"2":0,"3":3},{"1":1,"2":0,"4":1}]},"6":{"1":[{"1":2,"2":0,"5":{"1":2,"2":0}},{"1":0,"2":0,"3":3},{"1":1,"2":0,"4":1}]},"7":{"1":[{"1":2,"2":0,"5":{"1":2,"2":0}},{"1":0,"2":0,"3":3},{"1":1,"2":0,"4":1}]},"8":{"1":[{"1":2,"2":0,"5":{"1":2,"2":0}},{"1":0,"2":0,"3":3},{"1":1,"2":0,"4":1}]},"10":1,"15":"Calibri","16":11}" style="font-size: 11pt; font-family: Calibri, Arial;">पंडित मदन मोहन मालवीय एक बहुमुखी व्यक्तित्व वाले व्यक्ति थे। वे एक महान देशभक्त, एक शिक्षाविद्, एक समाज सुधारक, एक उत्साहपूर्ण पत्रकार, एक अनिच्छुक किंतु प्रभावशाली अधिवक्ता, एक सफल सांसद एवं एक उत्कृष्ट राजनेता थे। वे अंतर्मन से धार्मिक एवं मूल रूप से हिंदू थे और साथ-ही वे आधुनिक शिक्षा द्वारा विज्ञान के प्रसार एवं हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रवर्तक थे। वे अपने समय के एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे किंतु उन्होंने इसके लिये संवैधानिक तरीकों और साधनों द्वारा संघर्ष किया न कि ब्रिटिश सरकार से सीधे टकराव द्वारा। वे कांग्रेस में सम्मिलित हुए और इसमें उच्चतम स्तर तक पहुँचे किंतु फिर भी कई बार उन्होंने इसकी नीतियों का विरोध किया, क्योंकि उन्हें लगा कि वे नीतियाँ राष्ट्रहित के विरुद्ध थीं। उन्होंने कभी भी कांग्रेस की हर बात पर आँखें बंद करके विश्वास नहीं किया। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय भारत के लिये उनका महानतम योगदान है। यह वास्तव में उनकी बड़ी उपलब्धि थी जो कि भारत की जनता की शिक्षा के हित में थी और जिसे उन्होंने स्वयं अपने जीवनकाल में प्रफलित होते हुए देखा। अंदर के पृष्ठों में इस बात का एक रोचक एवं प्रेरक वर्णन है कि कैसे एक साधारण कथावाचक का पुत्र ऊँचा उठकर ‘महामना’ कहलाया जो कि गांधी की ‘महात्मा’ के समान उपाधि है।</span><br></p>