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<p><span data-sheets-value="{"1":2,"2":"स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी, 1863 को कलकत्ता में हुआ। वे वेदान्त के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे। उनका वास्तविक नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था। उनके पिता विश्वनाथ दत्त कलकत्ता उच्च न्यायालय के एक प्रसिद्ध वकील थे, जो पाश्चात्य सभ्यता में विश्वास रखते थे और अपने पुत्र नरेन्द्र को भी अंग्रेजी पढ़ाकर पाश्चात्य सभ्यता के ढर्रे पर चलाना चाहते थे। उनकी माता भुवनेश्वरी देवी धार्मिक विचारों वाली महिला थीं। उनका अधिकांश समय भगवान शिव की पूजा-अर्चना में व्यतीत होता था। नरेन्द्र की बुद्धि बचपन से ही अत्यंत तीव्र थी और उनमें परमात्मा को प्राप्त करने की लालसा बहुत प्रबल थी। 1879 में 16 वर्ष की आयु में उन्होंने कलकत्ता से परीक्षा पास की। अपने शिक्षाकाल में वे सर्वाधिक लोकप्रिय और एक जिज्ञासु छात्र थे किंतु हर्बर्ट स्पेंसर के नास्तिकवाद का उन पर पूरा प्रभाव था। उन्होंने स्नातक की उपाधि प्राप्त की और ब्रह्म समाज में शामिल हुए, जो हिन्दू धर्म में सुधार लाने तथा उसे आधुनिक बनाने का प्रयास कर रहा था। किन्तु वहाँ उनके चित्त को संतोष प्राप्त नहीं हुआ।"}" data-sheets-userformat="{"2":12477,"3":{"1":0,"3":1},"5":{"1":[{"1":2,"2":0,"5":{"1":2,"2":0}},{"1":0,"2":0,"3":3},{"1":1,"2":0,"4":1}]},"6":{"1":[{"1":2,"2":0,"5":{"1":2,"2":0}},{"1":0,"2":0,"3":3},{"1":1,"2":0,"4":1}]},"7":{"1":[{"1":2,"2":0,"5":{"1":2,"2":0}},{"1":0,"2":0,"3":3},{"1":1,"2":0,"4":1}]},"8":{"1":[{"1":2,"2":0,"5":{"1":2,"2":0}},{"1":0,"2":0,"3":3},{"1":1,"2":0,"4":1}]},"10":1,"15":"Calibri","16":11}" style="font-size: 11pt; font-family: Calibri, Arial;">स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी, 1863 को कलकत्ता में हुआ। वे वेदान्त के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे। उनका वास्तविक नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था। उनके पिता विश्वनाथ दत्त कलकत्ता उच्च न्यायालय के एक प्रसिद्ध वकील थे, जो पाश्चात्य सभ्यता में विश्वास रखते थे और अपने पुत्र नरेन्द्र को भी अंग्रेजी पढ़ाकर पाश्चात्य सभ्यता के ढर्रे पर चलाना चाहते थे। उनकी माता भुवनेश्वरी देवी धार्मिक विचारों वाली महिला थीं। उनका अधिकांश समय भगवान शिव की पूजा-अर्चना में व्यतीत होता था। नरेन्द्र की बुद्धि बचपन से ही अत्यंत तीव्र थी और उनमें परमात्मा को प्राप्त करने की लालसा बहुत प्रबल थी। 1879 में 16 वर्ष की आयु में उन्होंने कलकत्ता से परीक्षा पास की। अपने शिक्षाकाल में वे सर्वाधिक लोकप्रिय और एक जिज्ञासु छात्र थे किंतु हर्बर्ट स्पेंसर के नास्तिकवाद का उन पर पूरा प्रभाव था। उन्होंने स्नातक की उपाधि प्राप्त की और ब्रह्म समाज में शामिल हुए, जो हिन्दू धर्म में सुधार लाने तथा उसे आधुनिक बनाने का प्रयास कर रहा था। किन्तु वहाँ उनके चित्त को संतोष प्राप्त नहीं हुआ।</span><br></p>