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<p><span data-sheets-value="{"1":2,"2":"डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक महान दार्शनिक और राजनेता थे। वे भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति और द्वितीय राष्ट्रपति थे। वे विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग के अध्यक्ष भी थे। उन्हीं के मार्गदर्शन में स्वतंत्र भारत की शिक्षा प्रणाली की पुनः रचना की गई थी। वे जिस भी पद पर रहे, जीवन भर हृदय से शिक्षक ही बने रहे। शिक्षण व्यवसाय उनका प्रथम-प्रेम था और इसीलिये उनका जन्म दिवस सम्पूर्ण भारत में आज भी ‘शिक्षक दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। वे भारत के तुलनात्मक धर्म और दर्शन के सर्वाधिक प्रभावशाली विद्वानों में से एक थे। उन्होंने यह दर्शाया कि सभी परंपराओं की दार्शनिक प्रजातियाँ परस्पर सुबोधगम्य हैं। इस प्रकार उन्होंने पूर्व एवं पश्चिम के मध्य एक सेतु का निर्माण किया। उन्होंने विश्व के लिये भारत के धार्मिक एवं दार्शनिक साहित्य के आधिकारिक भाष्य लिखे। अंदर के पृष्ठों में इस बात का रोचक वर्णन है कि कैसे एक मध्यमवर्गीय ग्रामीण परिवार का एक बालक बड़ा होकर एक महान दार्शनिक, शिक्षाविद् और राजनेता बना। पुस्तक पाठकों को उनके जीवन की प्रमुख घटनाओं, जीवन-चरित्र एवं व्यक्तित्व से परिचित करवाती है। हमें आशा है कि पुस्तक पाठकों की जिज्ञासा को शांत करने में सफल सिद्ध होगी।"}" data-sheets-userformat="{"2":12477,"3":{"1":0,"3":1},"5":{"1":[{"1":2,"2":0,"5":{"1":2,"2":0}},{"1":0,"2":0,"3":3},{"1":1,"2":0,"4":1}]},"6":{"1":[{"1":2,"2":0,"5":{"1":2,"2":0}},{"1":0,"2":0,"3":3},{"1":1,"2":0,"4":1}]},"7":{"1":[{"1":2,"2":0,"5":{"1":2,"2":0}},{"1":0,"2":0,"3":3},{"1":1,"2":0,"4":1}]},"8":{"1":[{"1":2,"2":0,"5":{"1":2,"2":0}},{"1":0,"2":0,"3":3},{"1":1,"2":0,"4":1}]},"10":1,"15":"Calibri","16":11}" style="font-size: 11pt; font-family: Calibri, Arial;">डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक महान दार्शनिक और राजनेता थे। वे भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति और द्वितीय राष्ट्रपति थे। वे विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग के अध्यक्ष भी थे। उन्हीं के मार्गदर्शन में स्वतंत्र भारत की शिक्षा प्रणाली की पुनः रचना की गई थी। वे जिस भी पद पर रहे, जीवन भर हृदय से शिक्षक ही बने रहे। शिक्षण व्यवसाय उनका प्रथम-प्रेम था और इसीलिये उनका जन्म दिवस सम्पूर्ण भारत में आज भी ‘शिक्षक दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। वे भारत के तुलनात्मक धर्म और दर्शन के सर्वाधिक प्रभावशाली विद्वानों में से एक थे। उन्होंने यह दर्शाया कि सभी परंपराओं की दार्शनिक प्रजातियाँ परस्पर सुबोधगम्य हैं। इस प्रकार उन्होंने पूर्व एवं पश्चिम के मध्य एक सेतु का निर्माण किया। उन्होंने विश्व के लिये भारत के धार्मिक एवं दार्शनिक साहित्य के आधिकारिक भाष्य लिखे। अंदर के पृष्ठों में इस बात का रोचक वर्णन है कि कैसे एक मध्यमवर्गीय ग्रामीण परिवार का एक बालक बड़ा होकर एक महान दार्शनिक, शिक्षाविद् और राजनेता बना। पुस्तक पाठकों को उनके जीवन की प्रमुख घटनाओं, जीवन-चरित्र एवं व्यक्तित्व से परिचित करवाती है। हमें आशा है कि पुस्तक पाठकों की जिज्ञासा को शांत करने में सफल सिद्ध होगी।</span><br></p>