Rani Lakshmi Bai ki Jeevni

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Author: RPH Editorial Board
Publisher: Ramesh Publishing House
ISBN-10: 9350122677
ISBN-13: 9789350122679
Publishing year: 31 August 2016
No of pages: 56
Weight: 80 g
Book binding: Paperback

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<p><span data-sheets-value="{&quot;1&quot;:2,&quot;2&quot;:&quot;रानी लक्ष्मीबाई की जीवनी एक ऐसी भारतीय वीरांगना की जीवन गाथा है जिसने केवल 22 वर्ष की छोटी-सी आयु में ही सभी भारतीयों एवं विश्व के लोगों के मन में अपने शौर्य, वीरता, देशप्रेम एवं बलिदान द्वारा एक अनूठी मिसाल कायम कर दी थी। उन्होंने ऐसी अद्वितीय बहादुरी एवं बलिदान का प्रदर्शन किया जो उनके समकालीन पुरुष भी दिखाने में सर्वथा असफल रहे थे, वह भी उस युग में जब अधिकांश महिलाओं से घूंघट और परदों में छिपे रहने की अपेक्षा की जाती थी। उन्होंने न केवल घूंघट और परदों के सदियों पुराने रीति-रिवाज स्वयं तोड़े बल्कि अन्य महिलाओं को भी प्रेरित किया कि वे वीरांगना बनें, एकजुट हों और अपनी राज्य के लिये पुरुष सैनिकों की भांति संघर्ष करें। वे अपने समय की प्रथम शासिका थीं जिन्होंने ब्रिटिश सरकार से विवाद किया, विरोध किया, ललकारा और यहाँ तक कि बहादुरी से युद्ध भी किया। उन्होंने पुरुषों व महिलाओं की अपनी सेना संगठित की और ब्रिटिश सेना को युद्धभूमि में करारा जवाब दिया। अंदर के पृष्ठों में एक साधारण मातृहीन बालिका की रोमांचक कथा का वर्णन है जो एक रानी बनी और अपने अनुकरणीय साहस और सर्वोच्च बलिदान के द्वारा अपने राज्य और प्रजा की आजादी के लिये एक रानी के रूप में ही अमर हो गई। उन्होंने वास्तव में विश्व के प्रत्येक पुरुष एवं नारी के लिए बहादुरी और बलिदान का ऐसा अविस्मरणीय उदाहरण स्थापित कर दिया जिसे आने वाली पीढ़ियाँ कदापि भूल नहीं पाएँगी और सदा उनसे प्रेरणा प्राप्त करती रहेंगीं।&quot;}" data-sheets-userformat="{&quot;2&quot;:12477,&quot;3&quot;:{&quot;1&quot;:0,&quot;3&quot;:1},&quot;5&quot;:{&quot;1&quot;:[{&quot;1&quot;:2,&quot;2&quot;:0,&quot;5&quot;:{&quot;1&quot;:2,&quot;2&quot;:0}},{&quot;1&quot;:0,&quot;2&quot;:0,&quot;3&quot;:3},{&quot;1&quot;:1,&quot;2&quot;:0,&quot;4&quot;:1}]},&quot;6&quot;:{&quot;1&quot;:[{&quot;1&quot;:2,&quot;2&quot;:0,&quot;5&quot;:{&quot;1&quot;:2,&quot;2&quot;:0}},{&quot;1&quot;:0,&quot;2&quot;:0,&quot;3&quot;:3},{&quot;1&quot;:1,&quot;2&quot;:0,&quot;4&quot;:1}]},&quot;7&quot;:{&quot;1&quot;:[{&quot;1&quot;:2,&quot;2&quot;:0,&quot;5&quot;:{&quot;1&quot;:2,&quot;2&quot;:0}},{&quot;1&quot;:0,&quot;2&quot;:0,&quot;3&quot;:3},{&quot;1&quot;:1,&quot;2&quot;:0,&quot;4&quot;:1}]},&quot;8&quot;:{&quot;1&quot;:[{&quot;1&quot;:2,&quot;2&quot;:0,&quot;5&quot;:{&quot;1&quot;:2,&quot;2&quot;:0}},{&quot;1&quot;:0,&quot;2&quot;:0,&quot;3&quot;:3},{&quot;1&quot;:1,&quot;2&quot;:0,&quot;4&quot;:1}]},&quot;10&quot;:1,&quot;15&quot;:&quot;Calibri&quot;,&quot;16&quot;:11}" style="font-size: 11pt; font-family: Calibri, Arial;">रानी लक्ष्मीबाई की जीवनी एक ऐसी भारतीय वीरांगना की जीवन गाथा है जिसने केवल 22 वर्ष की छोटी-सी आयु में ही सभी भारतीयों एवं विश्व के लोगों के मन में अपने शौर्य, वीरता, देशप्रेम एवं बलिदान द्वारा एक अनूठी मिसाल कायम कर दी थी। उन्होंने ऐसी अद्वितीय बहादुरी एवं बलिदान का प्रदर्शन किया जो उनके समकालीन पुरुष भी दिखाने में सर्वथा असफल रहे थे, वह भी उस युग में जब अधिकांश महिलाओं से घूंघट और परदों में छिपे रहने की अपेक्षा की जाती थी। उन्होंने न केवल घूंघट और परदों के सदियों पुराने रीति-रिवाज स्वयं तोड़े बल्कि अन्य महिलाओं को भी प्रेरित किया कि वे वीरांगना बनें, एकजुट हों और अपनी राज्य के लिये पुरुष सैनिकों की भांति संघर्ष करें। वे अपने समय की प्रथम शासिका थीं जिन्होंने ब्रिटिश सरकार से विवाद किया, विरोध किया, ललकारा और यहाँ तक कि बहादुरी से युद्ध भी किया। उन्होंने पुरुषों व महिलाओं की अपनी सेना संगठित की और ब्रिटिश सेना को युद्धभूमि में करारा जवाब दिया। अंदर के पृष्ठों में एक साधारण मातृहीन बालिका की रोमांचक कथा का वर्णन है जो एक रानी बनी और अपने अनुकरणीय साहस और सर्वोच्च बलिदान के द्वारा अपने राज्य और प्रजा की आजादी के लिये एक रानी के रूप में ही अमर हो गई। उन्होंने वास्तव में विश्व के प्रत्येक पुरुष एवं नारी के लिए बहादुरी और बलिदान का ऐसा अविस्मरणीय उदाहरण स्थापित कर दिया जिसे आने वाली पीढ़ियाँ कदापि भूल नहीं पाएँगी और सदा उनसे प्रेरणा प्राप्त करती रहेंगीं।</span><br></p>